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धनतेरस का पर्व ; समृद्धि स्वास्थ्य और शुभारम्भ का प्रतीक

भारत विविध त्यौहारों का देश है , जहां हर पर्व अपनी एक अलग पहचान और महत्त्व रखता है। इन्हीं में से एक है धनतेरस जो दीपावली के पांच दिवसीय पर्व की शुभ शुरआत मानी जाती है। यह दिन न केवल धन – सम्पदा के पूजन का होता है , बल्कि अच्छे स्वास्थ्य , समृद्धि और नए आरम्भ का भी प्रतीक है

धनतेरस का धार्मिक महत्त्व

धनतेरस को ” धनत्रयोदशी ” भी कहा जाता है ‘ क्योंकि यह कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है ‘ पौराणिक मान्यताओं इसी दिन समुद्र मंथन के दौरान धनवंतरि भगवान अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, भगवान धनवंतरि को आयुर्वेद का जनक है इसलिए इस दिन स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना के लिए उनकी पूजा की जाती है

कहते हैं की जहां स्वास्थ्य है वहीं सच्चा धन है ‘ इसीलिए धनतेरस का वास्तविक अर्थ केवल सोना – चांदी खरीदना नहीं बल्कि जीवन में स्वास्थ्य और खुशहाली का स्वागत करना है

धनतेरस पर खरीदारी का महत्त्व

धनतेरस केदिन सोना , चांदी बर्तन या नई वस्तुएं खरीदना बहुत शुभ माना जाता है , ऐसा विशवास है की इस दिन खरीदी गयी चीज़ों में लक्ष्मी जी का वास होता है , जो घर में सुख – समृद्धि लाती हैं आज का आधुनिक युग में लोग इलेक्ट्रॉनिक वाहन और घर की ज़रूरी चीज़ें भी इस दिन खरीदते हैं

ग्रामीण भारत मैं लोग धान , गेंहू या अन्य अनाज खरीदकर भी शुभता का प्रतीक मानते हैं , यह केवल भौतिक संपत्ति की नहीं बल्कि परिश्रम आत्मनिर्भरता और आशा की भावना का प्रतीक बन चूका है

पूजन विधि और परम्पराएं

धनतेरस की शाम को घरों को दीयों और रंगोली से सजाया जाता है , दरवाज़े पर स्वस्तिक और ॐ का चिन्ह बनाकर मान लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा की जाती है । धनवंतरि भगवान को तुलसी दाल और धुप – डीप से आराधना अर्पित की जाती है

घरों में डीप जलाकर

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